मंगलवार, 19 जनवरी 2016

कौन...


चुप-चाप खड़े हैं हम दोनों, सवाल यही कि बोले कौन ?
बीच हमारे घोर खामोशी, चुप्पी के कान मरोड़े कौन ?

सर-सर बह रही हवाएं, कानों से मफलर खोले कौन ?
शब्द फंसे सब मुख के अंदर, सन्नाटे को तोड़े कौन ?

कटुता इतनी भरी है हममें, मिसरी सी बातें घोले कौन ?
लाख मानू सब अवगुण मेरे, तुम गुणवान ये बोले कौन ?

माना ओस की बूंदे शीतल, उससे प्यास बुझाये कौन ?
रेत भी गीली पानी से पर, रेत के कपड़े निचोड़े कौन ?

तन की पीड़ा ढ़ुलक के कटती, मन के मर्म को जाने कौन ?
जो ख्वाब सलोने भ्रम हैं फिर भी, नींद से नाता तोड़े कौन ?

रंग भी ले-लू फूलों से पर, धनुष इन्द्र के सजाये कौन ?
लक्ष्य रखे 'आकाश' से ऊंचे, मन को धैर्य जताये कौन ?

मुख तेज, ओज माथे पर है... फिर चंदन तिलक लगाये कौन ?

जब मां मेरी है घर पर बैठी, बिन आशीष जग जिताये कौन ?

मैं बस कागजों पर अहसास लिखता हूँ..


ना कवि, ना लेखक, ना ही इतिहासकार हूँ...
जीवन है अबूझ पहेली, उसके कुछ पल लिखता हूँ..
ना लिखता हूँ शायरी.. ना दोहों की करता बातें..
गुजरे उम्र का.. कागजों पर अहसास लिखता हूँ।

यादों के मर्म की बस.. कुछ बात लिखता हूँ..
कुछ उलझे हुए से अपने हालात लिखता हूँ..
जीवन उलझा जिनमें वो बेतरतीब सवाल लिखता हूँ..
और फिर कुछ उनके बेवजह से जवाब लिखता हूँ..
.... मैं बस कागजों पर अहसास लिखता हूँ..

जो बिगड़ गयी कुछ बात, उसकी याद लिखता हूँ..
कभी-कभी तुम संग बिते पलों का हिसाब लिखता हूँ..
तो कभी तुम बिन जागती रातों का खयाल लिखता हूँ..
फिर बिन तुम्हारें खाली पलों का मलाल लिखता हूँ..
.... मैं बस कागजों पर अहसास लिखता हूँ..

कुछ हारे कल का पल लिखता हूँ..
कुछ जीत का आने वाला कल लिखता हूँ..
कुछ जीने की आस लिखता हूँ..
कुछ मरे हुए जज्बात लिखता हूँ..

.... मैं बस कागजों पर अहसास लिखता हूँ..

Pages