मंगलवार, 26 जुलाई 2016

डोप का डंक...

किसी भी खेल के लिए सबसे जरूरी बात होती है उसके प्रति खिलाड़ियों का समर्पण। खिलाड़ी जब अपने पूरे समर्पण और निष्ठा के साथ खेल को आत्मसात करता है तभी वह खेल के हर पहलू का लुत्फ उठाता है और सफलता की इबारत भी गढ़ता है। खेलों के महाकुंभ 'ओलंपिक' को लेकर तो खिलाड़ी इतना उत्साहित होता है कि उसके लिए पदक से ज्यादा बस उसमें सहभागिता की बात ही उसे रोमांचित कर देती है। ऐसे में अगर किसी खिलाड़ी को किसी भी वजह से ओलंपिक से दूर किया जाए तो उसकी मनोदशा को समझना ज्यादा कठिन ना होगा।
ओलंपिक खेलों के लिए देश का प्रतिनिधित्व करने वाली टीम में स्थान मिलने के बाद भी ओलंपिक जाने को लेकर संशय की स्थिति खिलाड़ी के आत्मविश्वास को पूरी तरह झंकझोर देती है। ऐसा ही कुछ मामला रियो ओलंपिक 2016 के शुरू होने से ठीक पहले घट रहा है। भारत की ओर से ओलंपिक में पदक की उम्मीद बने पहलवान नरसिंह यादव डोप टेस्ट में फेल पाये गये हैं। उन पर प्रतिबंधित दवाओं के सेवन का आरोप लगा है। ऐसे में नरसिंह के रियो ओलंपिक जाने को लेकर फैसला अब भी लंबित है। इसी प्रकार शॉट पुटर इंदरजीत सिंह का '' सैंपल भी डोप टेस्ट में पॉजीटिव पाया गया है।
डोप के इस डंक से जहां खिलाड़ियों का मनोबल प्रभावित होता है, वहीं देश की गरिमा पर भी कलंक लगता है। ऐसे में रियो ओलंपिक में भारत की मेडल जीतने की उम्मीदों को सबसे बड़ा झटका लगा है।
डोपिंग को लेकर खेल और खिलाड़ी पर अक्सर संदेह के बादल छाये रहते हैं। आम तौर पर एक खिलाड़ी का करियर छोटा होता है। अपने सर्वश्रेष्ठ फॉर्म में होने के समय ही खिलाड़ी अमीर और मशहूर होना चाहता है। इसी जल्दबाजी और शॉर्टकट तरीके से पदक (मेडल) पाने की भूख में कुछ खिलाड़ी अक्सर डोपिंग के जाल में फंस जाते हैं। मगर भारतीय खिलाड़ियों के साथ ऐसा कुछ है या नहीं, इसका जवाब तो मामले की जाँच के बाद ही सामने आ सकेगा।
जहां तक बात इंदरजीत सिंह की है... रियो के लिए क्वालीफाई करने वाले सबसे पहले एथलीट्स में से थे। वो एशियन चैंपियनशिप में गोल्ड, एशियन ग्रां प्री और वर्ल्ड यूनिवर्सिटी गेम्स में जीत हासिल कर चुके हैं। इंचियोन में इंदरजीत सिंह ने ब्रॉन्ज मेडल जीता था। कंधे की चोट के बावजूद इंदरजीत सिंह ने इंडियन ग्रां प्री में दूसरा स्थान हासिल किया था। यह विडंबना ही होगी कि इतने मौकों पर भारत का मान बढ़ाने वाले खिलाड़ी की वजह से ही आज खेल के वैश्विक स्तर पर भारत की फजीहत हो रही है। ऐसा ही कुछ पहलवान नरसिंह यादव के साथ भी है। ओलंपिक में भारत के लिए कुश्ती का स्वर्ण पदक जीतने का सपना संजोने वाले नरसिंह को डोप का ऐसा डंक लगा कि अब वो पदक तो दूर सहभागिता मिलने की आस लगा रहे हैं।
डोप मामले में फंसे खिलाड़ियों को लेकर केंद्रीय खेल मंत्री विजय गोयल ने स्पष्ट किया है कि दोनों खिलाड़ियों को अस्थायी तौर पर निलंबित किया गया है। अगर नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी का पैनल उन्हें दोषमुक्त करार देता है तो वे रियो ओलंपिक में हिस्सा ले सकते हैं। फिलहाल अस्थायी निलंबन के कारण ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व अब 118 खिलाड़ी करेंगे। बता दें कि पहले रियो ओलंपिक के लिए भारत ने 120 खिलाड़ियों का दल तैयार किया था।
डोपिंग की यह बीमारी केवल भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में फैली हुई है। हाल ही में अंतरराष्ट्रीय खेल पंचाट ने डोपिंग को लेकर रूस की अपील खारिज कर दी, जिससे रूस की ट्रैक और फील्ड टीम रियो ओलंपिक में भाग नहीं ले सकेगी। यहां तक कि बीजिंग ओलंपिक 2008 के 23 पदक विजेताओं समेत 45 खिलाड़ी पॉजीटिव पाए गए। जाँच का परिणाम ये है कि बीजिंग और लंदन ओलंपिक के नमूनों की दोबारा जांच में नाकाम रहे खिलाड़ियों की संख्या अब बढ़कर 98 हो गई है।
वर्ष 2004 के एथेंस ओलंपिक खेलों में भी डोप के 26 मामले सामने आए। इससे पहले इतने खिलाड़ियों पर कभी भी डोपिंग का आरोप नहीं लगा। इन 26 खिलाड़ियों में से छह को पदक मिले थे। दो तो स्वर्ण पदक विजेता थे। बहरीन के राशिज रमजी के खून में तो ईपीओ तक पाया गया। ईपीओ से लाल रक्त कणिकाएं बढ़ जाती है और शरीर क्षमता से तेज काम करता है। इसके बाद रमजी से उनका स्वर्ण पदक छीन लिया गया।
डोपिंग के हालिया मामले और भारतीय खिलाड़ियों पर लगे आरोपों के बीच भारतीय प्रशंसकों की उम्मीद अब भी यहीं है कि दोनों खिलाड़ी नरसिंह यादव और इंदरजीत सिंह रियो जाएंगे। आखिर ऐसी उम्मीद हो भी क्यों ना.. जिस खिलाड़ी पर देश के लिए पदक जीतने का भार हो वो भला खेल दूर रहे तो किसे नहीं अखरेगा। खैर, खेल संघों की जाँच के जवाब पर ही यह तय होगा कि नरसिंह और इंदरजीत रियो में भारत का मान बढ़ाते हैं या डोप का डंक देश की गरीमा को लांछित करेगा।
    -आकाश कुमार राय

सोमवार, 13 जून 2016

बनारस ! तू मेरा प्यार है..

आज जो लौटा अपने बनारस तो लगा की जान में जान आई है... खुद से खुद का तार्रूफ कराने का सा अहसास हुआ। लगा कि मैं फिर से जी गया.. अपने शरीर में ही मूर्छित सा मैं था अब तक.. जो बनारस की मिट्टी को छुआ तो लगा जैसे संजीवनी मिली..।

कैंट से विद्यापीठ, सिगरा, रथयात्रा और भेलूपुर का रास्ता... इस कदर लोगों से खचाखच भरा था.. मानो मेरे आने की भनक से ही सब इकट्ठे हुए हों... मेरे ही स्वागत को जुटे हैं लोग... बेशूमार भीड़, गांड़ियों की पों-पों, कहीं मधुर शब्दों में भो....ड़ी का जोरदार उच्चारण... ये सब स्वाद सिर्फ बनारस ही दे सकता है... भले ही विकास के खांचे में कोई शहर कितना भी आगे निकल जाए मगर वो एक बनारसी को नहीं लुभा सका, तो उसका विकास बे-स्वाद सा लगता है...

आगे जब भेलूपुर चौराहे से विजया सिनेमा (जो अब आईपी विजया है) की ओर मुड़ा तो बाहें फैलाये शहर की सड़कें.. मेरा आलिंगन करने को बेताब दिखी... बनारस लौटकर आने से बड़ा सुख कोई नहीं..

लौंटा जो शहर में, तो यूं ही सारी पुरानी यादें अचानक मेरे जहन में कौंध गईं.. यहीं तो थीं वो सड़कें जहां बचपना खेल में बीता। इन्हीं गलियों में यारों-दोस्तों के बीच सारे त्यौहार मने..। आज सब कुछ वैसा है पर बस इन सब में मैं ही दूर हूँ.. एक यात्री की तरह बस शहर में घूमने आता हूँ.. या यूँ कहो कि शहर से दूर जितने पाप कमाता हूँ उन्हें ही काटने आता हूँ। बनारस मीलों में जरूर दूर हैं मगर जज्बातों और खयालों में ये मेरे साथ-साथ है..

सोनारपुरा, केदारनाथ गली, दशाश्वमेध, शिवाला और अस्सी ये वो स्थान हैं जिनका बखान किए बिना बनारस को मेरे नजरिए से नहीं जाना जा सकता। इन जगहों का ये आलम है कि यहां की हवाओं में महबूब की सी खुशबू आती है.. पता है, ना अब वो दिन हैं, ना ही उन दिनों की सी कोई बात.. मगर मेरी कल्पना ही सही.. यहां की गलियों में, घाटों पर आज भी यादों का वो जमघट मिल जाएगा। सोच तो ये भी है कि घाटों की सीढियां, गंगा की लहरें और मन्दिर की घण्टियाँ ये उन यादों से ही तो अलंकृत हैं... ये शोर आध्यात्म का, मेरे लिए शहर का प्रेम ही तो है.. शहर बदल गया है और लगातार बदल भी रहा है.. मगर शहर का हर कोना पुरानी यादों से लिपटा है, जो बता रहा है कि मैं आज भी यहां की फिजाओं में कहीं बसा हुआ हूँ।

बनारस.. जिसकी सोच ही व्यक्ति को पावन कर दे.. उस शहर को दिल-ओ-दिमाग में संजोए रखने वाला मैं किसी तीर्थ यात्री से कम थोड़े ही हूँ। बाबा भोलेनाथ, काल भैरव महाराज, संकटमोचन हनुमान जी और मां दुर्गा का मंदिर.. ये वो स्थान हैं जहां से मेरी हर यात्रा का प्रारम्भ हुआ और मेरे हर सफर का पड़ाव भी यहीं इनके चरणों में निमित्त रहा... इतनी अनुकम्पाओं के बाद भी बनारस तेरी कमी उस दिन खूब अखरती है जब मेरे माथे पर तिलक करने वाला कोई नहीं होता.. मैं शहर से दूर विकास की घटनाओं में घुटा सा जी रहा होता हूँ.. मेरे सूने से माथे पर ना मां के हाथ थाप देते.. और ना ही महादेव के नाम पर चंदन तिलक लगाने का सुख मिलता.. हां, सरे राह पंडित जी मिलते हैं माथे पर तिलक लगाने का कोरम भी पूरा करते हैं... बस इसी अहसास को पावन मानकर खुश हो लेता हूँ कि तू नहीं तेरा नाम सही.. माथे पर चंदन लगने के इस एक सोच से ही मेरी थकान को भी आराम मिलता है.. फिर तेरी ही याद का सुरूर लिए तेरा ये घुमक्कड़ सा आवारा बाशिंदा अपनी निगाहों को आराम देता है, कि कल फिर जब ये जगेगा तो सुबह-ए-बनारस से शहर को छानता हुआ शाम के पहर मां गंगा की आरती से तृप्त होगा।

बनारस शहर में....

"आया हूँ बनकर सन्देश मैं पावन से शहर में,
फिरता हूँ आजकल यहां गलियों के भंवर में।

फूलों सी गमकाई खुशबू भी अब साथ है अपने,
कि बड़ी सादगी के जीया हूँ इस सनातन शहर में।

यहां लोग सभी अपने ना है कोई पराया,
सुख-दुख का है साया रहा हरदम ही सफर में।

हो ना यकीन तुमकों तो कभी आ जाओं घर मेरे,
अल्हड़ सी मस्ती लिये फिरते, सब बनारसशहर में।"

शनिवार, 7 मई 2016

भयावह ख्वाब...

आज फिर डर गया विभत्स्य ख्वाब देख कर,
कि मेरी कलम थी टंगी..
साहूकार के यहां चंद सिक्कों के दाम पर।
फिर क्या,
हांथ भींचे, आंख मीचे, झट से मैं तो उठ गया।
इस ख्वाब की ताबीर पर भी, आंसू भर-भर रो गया।

है क्या इसमें हकीकत ये तो केवल ख्वाब था,
पर इस कल्पना ने ही खयाल सारे धो दिये।
ख्वाब थे पाले मैंने भी क्या, खूब नाम कमाउंगा,
इस शब्दलोक की भूमि पर, धन-धान्य जुटाउंगा।

ख्वाब टूटे, हांथ छूटे, जग सारा बैरी हो गया,
होकर निराश मन, मैं शून्य व्योम में खो गया।
चाह थी जो बसी उच्च शिखर पर जाने की,
उसमें थोड़ी फांस गड़ी और कलम चिरंतन सो गया।

गुरुवार, 28 अप्रैल 2016

देश हमें देता है सबकुछ, हम भी तो कुछ देना सीखे...

भारतएक शब्द नहीं बल्कि वह भाव है जो देशवासियों के दिलों में देशप्रेम और राष्ट्र के प्रति उसकी निष्ठा और समर्पण का संचार करता है। यह राष्ट्रप्रेम की भावना ही है कि हम आधुनिकता के इस दौर में भी कहीं न कहीं अपनी संस्कृति, नैतिक मूल्यों, परंपराओं व परिवारों को जोड़ कर रखे हुए हैं। यही कारण है कि हमारे संस्कार आज भी व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की परिकल्पना को संजोये हुए हैं उसमें राष्ट्र प्रथम सर्वोपरि है। प्राचीन काल हो या आज का दौर जब भी कभी राष्ट्र के ऊपर किसी भी तरह का संकट उभरा है तो सभी देशवासियों ने एक स्वर में एकजुटता का परिचय देते हुए उसका सामना किया है। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरियशिइस बात की परिचायक रही है कि जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर हैं.. पुराणों में निहीत यह सत्य आज भी युवाओं तक पहुंच रहा है तभी तो देश के सम्मान की बात आते ही 'तन समर्पित.. मन समर्पित.. और यह जीवन समर्पित...' की भावना लिए आज का युवा अपना सर्वस्व न्यौछावर करने तैयार हैं।
वैसे भी भारत युवाओं का देश है और यहां विश्व की सबसे अधिक उर्जा होने के कारण सबकी नजरे भारत पर टिकी हैं। ऐसे में यह अतिआवश्यक हो जाता है कि भारत का युवा अपनी जिम्मेदारियों को भलीभांति समझे और राष्ट्र के प्रति अपने दायित्वों का सही तरीके से निर्वहन करे। विकास के इस पायदान पर युवा कितना भी आगे निकल गया हो लेकिन कहीं न कहीं उसके दिल में अपनी सभ्यता, संस्कृति, ज्ञान परम्पराओं को लेकर आज भी जुड़ाव है। राष्ट्र के प्रति उसके मन में एक उमंग है, समाज के प्रति उसके दिल में एक संवेदना है। तभी तो हम गर्व से कहते हैं कि कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी.... लेकिन यह भाव स्थाई रूप से सदैव बना रहे और देश की तरक्की में खुद का योगदान सुनिश्चित हो सके इसके लिए कर्तव्यों के साथ-साथ अपनी जिम्मेदारियों को भी समझना पड़ेगा। हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि देश हमें देता है सबकुछ हम भी तो कुछ देना सीखे..
वैसे देखा जाए तो राष्ट्र प्रेम की भावना के साथ पले-बढ़े देशवासियों खासकर युवाओं में राष्ट्र प्रथम का भाव हमेशा रहता है। जो उन्हें जीवन के हर क्षेत्र में राष्ट्र सर्वोपरि की भावना के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। ऐसे में अगर शिक्षा के क्षेत्र की बात करें तो उच्च शिक्षा के नाम पर विदेशों में पढ़ने वाले छात्र अपनी शिक्षा पूरी कर स्वदेश में ही रोजगार पायें अथवा अपनी मातृभूमि पर कोई नया उद्योग-धंधा चलाये तो यह कदम देश के विकास में मददगार ही होगा। साथ ही देश में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और कुछ अन्य युवाओँ में बेरोजगारी का ग्राफ भी नीचे गिरेगा।
ठीक इसी प्रकार, सामाजिक, राजनीति और सांस्कृति परिक्षेत्र में भी युवाओं की भूमिका को राष्ट्र प्रथम की भावना के साथ परिलक्षित किया जाये तो वह देश के मान-सम्मान में चार-चांद ही लगाएंगे। जिस प्रकार भारतीय संस्कृति का प्रचार विदेशों में हो रहा है उससे कितने ही देश हैं जो हमारी पारंपरिक रीति-रिवाजों को जानने और समझने का प्रयास कर रहे हैं। कितने ही देश हैं जो हमारी सभ्यता पर शोध कर रहे हैं, काफी लोग हमारी संस्कृति को एक अलग और रुचिकर तौर पर देखते हैं और इसके प्रति आकर्षित हो रहे हैं। यह सब दर्शाता है कि राष्ट्र प्रथम का भाव किस प्रकार देशवासियों में समाहित है जो अपनी संस्कृति और सभ्यता का चाहे-अनचाहे, परोक्ष या अपरोक्ष रूप से प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। जिसके बल पर हमारा देश विश्वपटल पर अपनी खूबियों के साथ उभर रहा है।
देश में हुए कई बड़े आंदोलनों में युवाओं ने रचनात्मक भूमिका निभाई है, जिसका सकारात्मक प्रभाव देश के सामाजिक और राजनैतिक परिप्रेक्ष्य पर भी पड़ा। मगर वर्तमान में कुछ युवा आंदोलन उद्देश्यहीनता और दिशाहीनता से ग्रस्त होकर भ्रमित हो गये। जिसका परिणाम यह हुआ कि देश के आधार स्तंभ कहलाने वाले युवा देश के खिलाफ खड़े होते दिखे। ऐसे में कोई शक नहीं कि यदि समय रहते युवा वर्ग को उचित दिशा नहीं मिली तो राष्ट्र का अहित होने एवम् अव्यवस्था फैलने की सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता।
दुर्भाग्यवश वर्तमान समय में देश कुछ ऐसी स्थितियों से जूझ रहा है जिसमें देश के कुछ युवाओं को मोहरा बनाकर चंद सेकुलर व वामपंथी दल अपने स्वार्थ को साधने का काम कर रहे हैं। देश की अखंडता और एकता को प्रभावित करने के मंसूबे को लेकर काम करने वाले कुछ संगठनों के खिलाफ 'राष्ट्र प्रथम' के भाव के साथ पूरा देश एकजुट हैं.. लगातार इन देशद्रोहियों का प्रतिकार किया जा रहा है। ऐसे में जरूरत है कि युवाओं को स्वऔर परका बोध कराते हुए यह निश्चित किया जाए कि उनके मन-मस्तिष् में 'राष्ट्र प्रथम' का भाव प्रतिपल समाहित हो। साथ ही यह सुनिश्चित किया जाये कि उनके विचार किसी बाह्य शक्तियों द्वारा प्रभावित ना किया जा सके। ऐसे में जिस दिन प्रगतिशील भारत के प्रगतिशील युवा इस बात को अच्छी तरह समझ लेंगे उस दिन भारत को विश्व गुरुबनने से कोई रोक नहीं पायेगा। लेकिन भारत को 'विश्व गुरु' बनाने दिशा में जरूरी होगा कि 'राष्ट्र प्रथम' की भावना के ओत-प्रोत युवाओं का सही मार्गदर्शन किया जाये।
     - आकाश कुमार राय
   [लेखक राष्ट्रीय छात्रशक्ति पत्रिका के संपादन मंडल सदस्य हैं।]

कैसे करूं...

तेरे बिना मैं कोई फैसला कैसे करूं,
टूट चुका हूँ अब हौसला कैसे करूं।

सोचा नहीं कभी तेरे बिन भी होगी जिंदगी,
अब खुद को भला तुझसे जुदा कैसे करूं।

दिल से चाहा तुझे तो गुनाह कर दिया,
मुकर्रर खुद को इस गुनाह की सजा कैसे करूं।

हो सके तो तू ही कर दे मेरे दिल का फैसला,
मैं फिर तुझी से तुझ को पाने की दुआ कैसे करूं।

सोमवार, 14 मार्च 2016

तुम मेरी हर बात में रहो...


"सुबह रहो, शाम रहो और रात को रहो,
तुम हर वक्त मेरी हर एक बात में रहो।
मुझको डराती हैं ये वक्त-बेवक्त की आंधियां,
तुम हर घड़ी, हर पल बस मेरे साथ में रहो।
गर कभी बिखरू, तो भी कोई गम नहीं मुझे,
संभलू जो गर कभी तो तुम्हीं याद में रहो,
ये तन्हाइयां-रुसवाइयां मुझे कब तक सताएंगी,
मैं सब सहूंगा, जो तुम सिलसिला-ए-मुलाकात में रहो।"

मंगलवार, 19 जनवरी 2016

कौन...


चुप-चाप खड़े हैं हम दोनों, सवाल यही कि बोले कौन ?
बीच हमारे घोर खामोशी, चुप्पी के कान मरोड़े कौन ?

सर-सर बह रही हवाएं, कानों से मफलर खोले कौन ?
शब्द फंसे सब मुख के अंदर, सन्नाटे को तोड़े कौन ?

कटुता इतनी भरी है हममें, मिसरी सी बातें घोले कौन ?
लाख मानू सब अवगुण मेरे, तुम गुणवान ये बोले कौन ?

माना ओस की बूंदे शीतल, उससे प्यास बुझाये कौन ?
रेत भी गीली पानी से पर, रेत के कपड़े निचोड़े कौन ?

तन की पीड़ा ढ़ुलक के कटती, मन के मर्म को जाने कौन ?
जो ख्वाब सलोने भ्रम हैं फिर भी, नींद से नाता तोड़े कौन ?

रंग भी ले-लू फूलों से पर, धनुष इन्द्र के सजाये कौन ?
लक्ष्य रखे 'आकाश' से ऊंचे, मन को धैर्य जताये कौन ?

मुख तेज, ओज माथे पर है... फिर चंदन तिलक लगाये कौन ?

जब मां मेरी है घर पर बैठी, बिन आशीष जग जिताये कौन ?

मैं बस कागजों पर अहसास लिखता हूँ..


ना कवि, ना लेखक, ना ही इतिहासकार हूँ...
जीवन है अबूझ पहेली, उसके कुछ पल लिखता हूँ..
ना लिखता हूँ शायरी.. ना दोहों की करता बातें..
गुजरे उम्र का.. कागजों पर अहसास लिखता हूँ।

यादों के मर्म की बस.. कुछ बात लिखता हूँ..
कुछ उलझे हुए से अपने हालात लिखता हूँ..
जीवन उलझा जिनमें वो बेतरतीब सवाल लिखता हूँ..
और फिर कुछ उनके बेवजह से जवाब लिखता हूँ..
.... मैं बस कागजों पर अहसास लिखता हूँ..

जो बिगड़ गयी कुछ बात, उसकी याद लिखता हूँ..
कभी-कभी तुम संग बिते पलों का हिसाब लिखता हूँ..
तो कभी तुम बिन जागती रातों का खयाल लिखता हूँ..
फिर बिन तुम्हारें खाली पलों का मलाल लिखता हूँ..
.... मैं बस कागजों पर अहसास लिखता हूँ..

कुछ हारे कल का पल लिखता हूँ..
कुछ जीत का आने वाला कल लिखता हूँ..
कुछ जीने की आस लिखता हूँ..
कुछ मरे हुए जज्बात लिखता हूँ..

.... मैं बस कागजों पर अहसास लिखता हूँ..

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