रविवार, 23 सितंबर 2012

एक खयाल...


"वो जरा-जरा सी बात पर नज़रे झुकाते थे,
हमें लगता था कि वो हमसे शर्माते थे,
हुआ शर्मिंदा बहुत अपनी इस बेजां खयाली पे,
जब ये जाना कि...
वो आदतन लोगों से बहुत कम नज़र मिलाते थे।

ख्वाब टूटे, अरमान भी सब चकनाचूर हो गये,
फिर हम अपनी सोच में भी...
मोहब्बत की कहानी से दूर हो गये।
बमुश्किल जान पाया मैं, एक हसीन अदा उनकी,
हमें आजमाने को ही...
वो नज़रें मिलकर पलके झुकाते थे।"

Pages