मंगलवार, 27 मार्च 2012

दिल से निकली पंक्तियां..

"आजकल नहीं देख पा रहा, सूरज की प्रभात लालिमा।
मैं अक्सर देर से उठता हूँ, वो सुबह जल्दी निकलता है।"

"मैनें खुद के लिए खुदा से मांगना ही छोड़ दिया है,
जब से उसने किसी और से चाहत की बात कही है।"

"वो मुझसे पूछता है, ख्वाब किस किस के देखते हो,
बेखबर जानता ही नही, यादें उसकी सोने कहाँ देती हैं!"

"मुस्कुराने से भी होता है बयां गम-ए-दिल,
मुझे रोने की आदत हो ये जरुरी तो नहीं..।"

"तुझसे बुरा दुनिया मे कोई नहीं है इश्क,
हर भले को बिगाड़ने का काम किया तूने।"

"हमें अच्छा नहीं लगता, कोई हम-नाम तेरा,
कोई हो तुझसा, तो फिर नाम तुम्हारा रखे।"

"जब भी सोचता हूँ तेरे बिना क्या है मेरी जिन्दगी,
एक उजड़े हुए गुलिस्तां का मंजर याद आता है।"

"ख्वाहिशों का काफीला भी अजीब ही होता है,
अक्सर वहीं से गुजरता है जहां रास्ते नहीं होते।"

"तुम जो इजाजत दो तो चंद लफ्जों में कह डालें,
कि तुम बिन मर तो सकते हैं, पर जी नहीं सकते।"

"ये लफ्जों की शरारत है, जरा संभल कर लिखना तुम,
मोहब्बत लफ्ज भर है लेकिन, ये अक्सर हो भी जाती है।"

"जिन्दगी तो मेरे जन्म के पहले से ही खूबसूरत है,
मेरी कोशिश तो इसे और बेहतर बनाने की है...।"

"मंजिलों का गम करने से मंजिलें नहीं मिला करती,
हौसले भी टूट जाते हैं, अक्सर उदास रहने से...।"

"जो तुम्हें देख के फिर और किसी के देखे,
वो एक तमाशाई है तलब-ए-दीदार नहीं...।"

"ये मैं ही था, बचा के खुद को ले आया कनारे तक,
वर्ना, समंदर ने बहुत मौका दिया था डूब जाने का।"

"बहुत मुश्किल है कोई लगाये मेरी चाहतों का अंदाजा,
कि मेरी चाहतों का समंदर उनकी सोच से भी गहरा है..।"

"मैं काबिल-ए-नफरत हूँ तो छोड़ दे मुझको,
तू मुझसे यूं दिखावे की मोहब्बत न किया कर..।"

"तुझसे रुठने के बहाने तो बहुत हैं मगर,
डरता हूँ गर मनाने न आया तो क्या करेंगे।"

"उसकी मोहब्बत का सिलसिला भी क्या अजीब सिलसिला था,
अपना भी नहीं बनाया और किसी का होने भी नहीं दिया...।"

"अल्फाज इन्सान के गुलाम होते हैं, मगर बोलने से पहले ।
बोलने के बाद इन्सान लफ्जों का गुलाम बन जाता है ।।"

"सफर तो है मेरा, रफ्तार मगर तुम हो।
न होते तुम तो शायद तेज दौड़ता,
या किसी ठौर पर रुक ही जाता...।"

"उनकी शिकायत है की मैं तारीफ नहीं करता,
कैसे कहूं की अब मैं सच बोलने लगा हूँ...।"

"वाह रे दुनिया की साफगोई,
दीवारो को रंगों में बांटा, और
इंसानो को मजहबों के फेर में..."

"मत छोड़ मेरा साथ तू जिंदगी में इस तरह, दोस्त
शायद हम जिंदा हैं तुम्हारे ही साथ रहने से..."

"यह विसंगति जिंदगी के द्वार सौ-सौ बार रोई....
चाह में है और कोई...बांह में है और कोई...."

"मरना तो इस जहान में कोई हादसा नहीं,
इस दौर-ए-नागवारी में जीना कमाल है...।”"

"जिन राहों पे एक उमर तेरे साथ रहा हूँ,
कुछ रोज से वो रास्ते सुनसान बहुत हैं..."

"अबकी वो बिछड़ेगा तो ये इल्तजा करुंगे उससे,
बिन अपने जीने का कोई अंदाज तो सिखाता जा..."

"वो कहती रहीं हर बार, मेरी मुस्कुराट कमाल है..
सच ही कह रही थीं शायद, तभी तो
आज जाते हुए, साथ सिर्फ मेरी मुस्कुराहट ले गयी।"

"काश ! वो सुबह नींद से जागे तो मुझसे लड़ने आये,
कि तुम कौन होते है मेरे ख्वाबों में आने वाले।"

"गैरों को कब फुरसत है गम देने की,
जब होता है कोई हमदम होता है।"

"बर्बाद बस्तियों में किसे ढ़ूढ़ते हो तुम,
उजड़े हुए लोगों के ठिकाने नहीं होते।"
"
"कफन पड़ा तन पे तो ये मालूम हुआ,
कि लोग परदा नशीनों को इतना चाहते क्यों हैं।"

"कैसी खामोशी है इन लम्हों में,
जैसे सारे रंग उड़ चले हैं जिन्दगी के हमारे।"

"मैं इस लिए भी अक्सर अपनी ख्वाहिशों को मार देता हूँ,
कि मुझे वो नहीं मिला करता जो ख्वाहिश बन जाता है।"

"आसां नहीं आबाद करना घर मोहब्बत का,
ये उनका काम है जो जिन्दगी बरबाद करते हैं।"

"आजकल सूरज से बहुत कम मेरी आंख मिलती है।
रात जागते बीत जाती है, दिन आंखों खोलने में गुजरती है।"

"जगी है प्यास ऐसी की, समन्दर भी कम लग रहा।
पर मुकद्दर ऐसा है, कि जहर भी नहीं मिल रहा।।"

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