गुरुवार, 24 नवंबर 2011

शायरी......

हम उन्हें वो हमें, एक दूजे की गलतियों पर इल्जाम देते हैं मगर,

अपने अंदर झांकने का हौसला वो भी नहीं रखते, हम भी नहीं...।


मेरी मज़ार पर ख्वाहिशों का इतना सार लिख देना,

कि एक शख्स जिन्दगी की हसरत में मर गया...।‌


किसी से क्या गिला करना इस जहान में,

शायद हम ही याद के काबिल नहीं रहे।


शहर वाले सजाते हैं, हर झूठ पर रिश्तों के आशियानें,

और हमें पछताना पड़ा है अपने पहले ही झूठे बयान पर।


"नींद से मेरा ताल्लुक ही नहीं बरसों से, फिर

ख्वाब आ-आ कर मेरे छत पर टहलते क्यों हैं..."


आज आईने में अपनी भी सूरत ना पहचानी गयी,

आंसुओं ने आंख का हर अक्श धुंधला कर दिया।


मैं एक खिलौना हॅू, और वो उस बच्चे की तरह है,

जिसे प्यार है मुझसे, पर सिर्फ खेलने की हद तक।


तुम्हें मालूम है जाना कि तुम भी एक कातिल हो,

मेरे अंदर का हंसता हुआ इंसान तुमने मार डाला है।


सूरज को जागने में जरा देर क्या हुई,

चिड़ियों ने आसमान ही सर पर उठा लिया।


आज कल मिलती है हमें बहुत कम फुरसत,

रात सोने में गुजरती है, दिन उठने में है जाता।


"नींद आये तो ख्वाबों का मुकद्दर भी हो रोशन,

जब नींद ही नहीं है, तो फिर ख्वाब कहां के...।"


हवा परेशान है कि आज उसने जुल्फों को क्यों नहीं समेटा

शायद उसकी ज़िन्दगी आज जुल्फों से ज्यादा उलझ गयी है....


खुबसूरत क्या कह दिया उनको, हमको छोड़ कर वे शीशे के हो गए,

तराशा नही था तो पत्थर थे, तराश दिया तो खुदा हो गए ....”\


हम गलत कुछ नहीं करते हैं,

हम तो ज़माने के साथ चलते हैं।


मोहलत तो दे मुझे कुछ... ऐ-वक़्त के मुसाफिर,

तेरी ही यादों से हैं मेरी तकदीर की तस्वीर,

यूँ तो सारा जहाँ हैं खजाने में मेरे,

बस तू ही नहीं मेरे हम-दम ...... मेरे रकीब.....


एक ना तमाम ख्वाब मुकम्मल न हो सके,

आने को जिंदगी में बहुत इंकलाब आये...।


मंदिर में फूल चडाने गया तो अहसास हुआ की....

पत्थरो की ख़ुशी के लिये फुलोंका कत्ल कर आये हम ...

मिटाने गये थे पाप जंहा... वहीं एक और पाप कर आये हम.....


चेहरे अजनबी हो भी जायें तो कोई बात नहीं लेकिन,

रवैये अजनबी हो जाये तो बड़ी तकलीफ देते हैं...।


"मैं जो चाहू तो अभी तोड़ लू नाता तुमसे,

पर मैं बुजदिल हूँ, मुझे मौत से डर लगता है।"


है मिजाज अपना परिंदा, आवारगी-ए-आलम अपना शौक,

पर एक उनकी ख्वाहिश ने, मेरी उड़ान को पाबंद कर दिया...


बेताब दिल का हाल खुद-ब-खुद जाहिर हो जाता है,

जब भी जरा सा जिक्र उस नाम का हो उठता है...।


"बदला हुआ है आज मेरे आंसुओं का रंग,

फिर दिल के जख्म़ का कोई टांका उधड़ गया..."


"किसी का ना समझना भी हमे बहुत दर्द देता है,

बस जो सामने दिखाई न दे उसे लोग माना नहीं करते..."


तेरी सूरत पर मुझे कभी नाज ना था,

कमबकत तेरी सीरत ने दगा दे दिया....


अफवाह कभी दिल-ए-हालात बता नहीं सकते,

जो जाननी हो तबियत तो हमसे मिलते रहा करो...


बीज तब ही बोना जब ज़मीन को परख लेना,

हर एक मिट्टी की फितरत में वफादारी नहीं होती।


इश्क का टुटा वो इमां बेच आया ...

खुदा के डर वो बचपन बेच आया ...


पुराना मंजर...

"आज फिर कुछ पुराना मंजर याद आने लगा है,

उन हसीन लम्हों को सोच मन हर्षाने लगा है।

कभी हर पल की जिद्द पर कोई ख्वाहिश पूरी होती,

आज ख्वाहिशे हैं हल पल बस जिद्द अधूरी सोती!


हमारी शरारतों पर उन दिनों मिलती हमें लोरियों की थाप थी,

आज दिल खोजता उस डांट को, जिसमें कभी दुलार की छाप थी!


जाने क्यों वक़्त दूरियों की इतनी पाबन्द होती है,

कि समय के साथ बदलाव की बाते बुलंद होती हैं,

क्यों नहीं सब रिश्तें हर समय एक समान होते हैं,

क्यो बचपन बीतने पर हम नींद-ओ-चैन खो देते हैं।


जब कभी इन बातो पर आता विचार, होते हम शर्मिंदगी से चूर,

आखिर क्यों अपनों से हैं हम दूर, कि क्यों हम हैं इतने मजबूर...!"

Pages