रविवार, 31 जुलाई 2011

मोहम्मद रफ़ी : वो जब याद आये, बहुत याद आये......

सुरों के सरताज मोहम्मद रफ़ी की रविवार ३१ जुलाई को पुण्यतिथि है। हर रोज गूंजती है टीवी या रेडियो पर उनकी आवाज और विश्वास नहीं होता कि उनको हमसे बिछड़े हुए इतने साल बीत गए। आज सशरीर वे भले हमारे बीच न हों लेकिन मोहब्बत हो या जुदाई, भजन हो या कव्वाली, शादी हो या विदाई, जीवन का कोई ऐसा मौका नहीं जो मोहम्मद रफी की आवाज में घुलकर ये गाने हमारे कानों तक न पहुंचते हों। रफी के गीतों में कर चले हम फिदा जान-ओ-तन साथियो' में देशभक्ति का जोश है तो 'मन तड़पत हरि दर्शन को आज' में भक्ति भाव का समर्पण। फिल्म 'कश्मीर की कली' के मशहूर गीत 'तारीफ करूं क्या उसकी जिसने तुझे बनाया' में 'तारीफ' शब्द का इस्तेमाल दर्जनों बार किया गया है लेकिन इसे गाते समय मोहम्मद रफी ने हर बार 'तारीफ' शब्द को एकदम अलग-अलग अंदाज में इस तरह गाया है कि मुंह से 'वाह' निकल पड़ता है।

शहंशाह-ए-तरन्नुम कहलाने वाले रफी साहब आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है। हिंदी सिनेमा में अपनी आवाज और शोखी के आधार पर अलग पहचान बनाने वाले गायक रफी की कमी आज भी लोगों को खलती है। नये गायकों के लिए रफी साहब के गाने जैसे संजीवनी हो कि जिसे गुनाकर वह संगीत का ककहरा सीख लेंगे। संगीत के पुरोधा कहते हैं.. बॉलवुड में कभी के.एल. सहगल, पंकज मलिक, के.सी. डे समेत जैसे गायकों के पास शास्त्रीय गायन की विरासत थी, संगीत की समझ थी लेकिन नहीं थी तो वो थी आवाज। जिसे रफी ने पूरा किया। सन १९५२ में आई फिल्म 'बैजू बावरा' से उन्होंने अपनी स्वतंत्र पहचान बनायी।

१९६५ में पद्मश्री से नावाजे जा चुके रफी साहब को ६ बार फिल्मफेयर अवार्ड मिल चुका है। उनके गाये गीत.. चौदहवीं का चांद हो, हुस्नवाले तेरा जवाब नहीं, तेरी प्यारी प्यारी सूरत को (ससुराल), ऐ गुलबदन (प्रोफ़ेसर), मेरे महबूब तुझे मेरी मुहब्बत की क़सम (मेरे महबूब), चाहूंगा में तुझे (दोस्ती), छू लेने दो नाजुक होठों को (काजल), बहारों फूल बरसाओ (सूरज), बाबुल की दुआएं लेती जा (नीलकमल), दिल के झरोखे में (ब्रह्मचारी), खिलौना जानकर तुम तो, मेरा दिल तोड़ जाते हो (खिलौना), हमको तो जान से प्यारी है (नैना), परदा है परदा (अमर अकबर एंथनी), क्या हुआ तेरा वादा (हम किसी से कम नहीं ), आदमी मुसाफ़िर है (अपनापन), चलो रे डोली उठाओ कहार (जानी दुश्मन), मेरे दोस्त किस्सा ये हो गया (दोस्ताना), दर्द-ए-दिल, दर्द-ए-ज़िगर (कर्ज), मैने पूछा चांद से (अब्दुल्ला).. आज भी बजते हैं तो लोग उनकी आवाज में खो जाते हैं।

गौरतलब है कि पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित रफी का जन्म २४ दिसंबर १९२४ को हुआ था और ३१ जुलाई १९८० के दिन मुंबई में दिल का दौरा पढने से उनका निधन हो गया। आज भले ही रफी जी दुनिया में ना हो पर उनके गानों और आवाज के बलबूते वो हर पल लोगों की दिलों में संगीत लहरी के तौर पर जिंदा रहेंगे। बरसों पहले जब उन्होंने गीत ‘तुम मुझे यूँ भूला ना पाओंगे...' गाया होगा तो नहीं सोचा होगा ये गीत केवल शब्द नहीं बल्कि भविष्य की सच्चाई को बयां कर रही है। वाकई संगीत के प्रशंसक आज भी मोहम्मद रफी को उनके गाये गानों में तलाशते हैं।

(पुण्यतिथि पर विशेष...)

रविवार, 24 जुलाई 2011

...और क्या देते

"तुम्हे बख्शी है दिल पे हुक्मरानी और क्या देते ,
यही थी सिर्फ अपनी राजधानी और क्या देते ,
सितारों से किसी की मांग भरना इक फ़साना है ,
तुम्हारे नाम लिख दी जिंदगानी और क्या देते ,
बिछरते वक़्त तुम्हे इक न इक तोहफा तो देना था ,
हमारे पास था आँखों में पानी और क्या देते ...!"
‎"मै ये नहीं कहता कोई उनके लिए दुआ न मांगे ,
बस चाहता हूँ कोई दुआ में उनको न मांगे ...."

"माना की बहुत खास हूँ में अपने चाहने वालो के लिए लेकिन ...
चंद लम्हों से ज्यादा कोई न रोयेगा मेरे चले जाने के बाद ..."
"सुकून दिन को , रात को राहत नहीं है ,
मुझे फिर भी उनसे शिकायत नहीं है ,
मै हक उसपे अपना जताऊ भी तो कैसे,
वो चाहत है मेरी अमानत नहीं है..."

‎"जिस मासूमियत से मैंने अपने ज़ख्म दिखाए थे ,
उतनी ही मेहरबानी की उसने उन्हें नासूर बनाने में ..."
"तुमसे न कट सकेगा अंधेरों का ये सफ़र ,
अब रात हो रही है मेरा हाथ थाम लो ..."
"मैं बिखरा नही हूँ, बस थोडा टूट गया हूँ !
मैं खफा भी नही, बस थोडा रूठ गया हूँ !
मत सोच के मैंने चाहा है तेरा साथ छोड़ना !
तू आगे निकल गया और मैं पीछे छुट गया हूँ !!"

"मेरे न रहने से किसी को कोई खास फरक नहीं पड़ेगा,
बस एक तन्हाई रोएगी की मेरा हमसफ़र चला गया..."

"फ़रिश्ते से बेहतर है इंसान बनना..
मगर उसमे लगती है मेहनत ज्यादा...."
"आरम्भ के स्तर से
विकास के शिखर तक,
यह क्रम सब जीवन में फिरते हैं....

पर मौत उस सच्चाई
को नहीं नापती,
जहाँ से हम गिरते हैं....."
"एक ठंडी हवा, एक बादल, एक खूबसूरत आसमान...
मैं जहाँ कहीं भी जाता हूं , अपने घर की धुल साथ ले जाता हूँ..."

"फुर्सत ही नहीं मिली कभी मुझको दिल लगाने की ...
इसलिए ये मोहब्बतों के मुद्दे मेरी समझ में नहीं आते ..."

खलीश मन की...

"बेनाम सा ये दर्द, ठहर क्यों नहीं जाता,
जो बीत गया है, वो गुज़र क्यों नहीं जता,

वो एक ही चेहरा तो नहीं, सारे जहां में,
जो दूर है, वो दिल से उतर क्यों नहीं जाता,

मैं अपनी ही उलझी हुई, राहों का तमाशा,
जाते हैं जिधर सब, मै उधर क्यों नहीं जाता,

वो नाम जो बरसो से, ना चेहरा ना बदन है,
वो ख्वाब अगर है, तो बिखर क्यों नहीं जाता...."
"खो गया यादों के हुजूम में अपना ही वजूद ,
कि अब याद नहीं किस याद ने महफूज रखा था..."
"तुझे अकेले पढूँ कोई हम-सबक न रहे ,
मैं चाहता हूँ की तुझ पर किसी का हक न रहे .."

इक बात कहूं गर सुनते हो ..

इक बात कहूं गर सुनते हो .
तुम मुझको अच्छे लगते हो .
कुछ चुप - चुप से , कुछ चंचल से ,
कुछ पागल - पागल लगते हो .

हैं चाहने वाले और बहुत ,
...पर तुम में है इक बात अजब ,
तुम मेरे सपने से लगते हो.
इन ख्वाबों से आगे बढ़कर .
तुम अपने अपने से लगते हो .

इक बात कहूं गर सुनते हो .
तुम मुझको अच्छे लगते हो .
"उसे मालूम है शायद मेरा दिल है निशाने पर ,
लबों से कुछ नहीं कहती नज़र से वार करती है,
मैं उससे पूछता हूँ ख्वाब में , 'मुझ से मोहब्बत है ?
फिर आँखें खोल देता हूँ वो जब इज़हार करती है ''
‎"Lamhon mein qaid kar de jo sadiyon ki chahate
Hasrat rahi ki aisa koi apna bhi talabgaar ho..!!"
वक्त और लहरें किसी का इंतजार नहीं करतीं। एक न एक दिन हम सबको आखिरी नतीजों का सामना करना ही पड़ता है। मुस्कुराते हुए इसका सामना करने की तैयारी करना बेहतरी है।
‎"हमारा दिमाग, इस दुनिया में सबसे बड़ा धोखेबाज़ है! यह अपने रास्ते चलने के लिए अलग-अलग तरह के हज़ारों बहाने करता है!"
‎"गली गली मैं हुआ मेरी हार का ऐलान ,
ये कौन जाने की मैं तो बिसात पर ही न था "
"वो जो औरों को बताता है जीने के तरीके ...
खुद अपनी मुट्ठी में मेरी जान लिए फिरता है ......"
"मैं रोजमर्रा के अनुभवों में, होशमंद हालत में, यूं ही भटकता हूं ... महसूस करता हूं कि जैसे कोई जहाज हूं जो परिस्थितियों के समंदर में है ..."
"हमे भी पता है साहिल का सुकून, लेकिन
लुफ्त हमे सागर से टकराने में आता है.."
"मुखालफत से मेरी शख्सियत निखरती है ,
मैं दुश्मनों का बड़ा एहतराम करता हूँ ! "
‎"शिद्दत-ए-दर्द से शर्मिंदा नहीं है मेरी वफ़ा ... !
दोस्त गहरे हैं तो फिर जख्म भी गहरे होंगे !!"
“Wo Chup Rehta Tha Magar, Uski Nighahen Bolti Thi...
kuch Log khamosh Reh Kar Bhi “DIL” Jeet Jaatey Hain...!”
‎"शायद कोई ख्वाहिश रोती रहती है,
मेरे अंदर बारिश होती रहती है।
रोज सजाता हूँ ख्वाबों का कारवां,
हकीकत मेरी आंखों को धोती रहती है।"
"जो छू नहीं सकते, जमीं की सहजता,
उन्हें अधिकार नहीं है, आकाश छूने का ...."
राहें सदा असंतोष से निकलती हैं, संतोष के गढ़ से कोई भी राह बाहर की ओर नहीं जाती। मैं भी असंतोष के दौर में हूँ और अपने मंजिल को उन्मुख मेरा सफ़र लगातार जारी है।
‎"नहीं काबिल तेरे लेकिन, मुनासिब हो अगर समझो,
याद रखना दुआओं में, यही बस इल्तजा अपनी ....!"
‎"हवाओं ने है रुख बदला, तूफां की गुंजाइश है ...
जिद अपनी भी न रुकने की, आज हौसलों की आजमाईश है !"
‎"पलकों की हद को तोड़ कर बाहर वो आ गया,
एक आंसू मेरे सब्र की तौहीन कर गया....!"
‎"ज़िन्दगी के मेले में, मैंने बस यही देखा ,
इक दुकान सपनों की, इक हुजूम दुनिया का..."

मैं..

‘‘तुम जैसा समझते रहे वैसा तो नहीं मैं,
कांटा हूँ मगर फूल पे चुभता तो नहीं मैं!

अपनों से तो रूठा हूँ मैं सौ बार बहरहाल,
पर गैरों में जाकर कभी बैठा तो नहीं मैं!

रोता है अब भी दिल मेरा अक्सर ये सोचकर,
भूला हैं मुझे वो, उसे भूला तो नहीं मैं!

खुद्दारी की कुछ दाद तो तुम्ही दो मेरी आँखों,
हालात तो रोने के थे रोया तो नहीं मैं! "
किसी की तकलीफों का जिम्मेदार नहीं है "आकाश ".. ,
फिर भी लोग मुसीबतों में मेरी तरफ क्यों देखेते हैं ...!'
‎"Mera kissa...Meri Zindagi...Meri Hasraton Ke Siwa Kuch Nahi,
Ye Kiya Nahi, Wo Hua Nahi, 'Ye' Mila Nahi, 'Wo' Raha Nahi !!!"
‎" एहसास तो कर इन जज्बों का, नजरों से गिरा बेशक लेकिन!
जीना भी मुझे दुश्वार लगे, इतना तो नजर अंदाज़ ना कर....!! "
‎"कभी सुना था की ज़िन्दगी हौसलों से कटती है, आज पता चला 'मरने की आरज़ू' और 'सिसकती साँसों' को भी लोग जीना कहते हैं...!"
‎"लगातार प्रयास और अपनी गलतियों से सीख कर हर किसी को सही कदम उठाना ही पड़ेगा क्योंकि किसी की भी जिंदगी इतनी लंबी नहीं होती वह 'चाणक्य' बनने तक की अवधि का इंतज़ार कर सके!"
"सोचता हूँ बिना शर्त के आये मौत तो हाथ मिला लूं ,
कि उब्ब गया हूँ ज़िन्दगी से समझौता करते-करते...."
‎"टुकड़ों में जी रहे हैं, जीने की चाह में हम,
महंगा पड़ा है शायद ये ज़िन्दगी का शौक..
सादगी है ये की दिल कहता है सबको अपना,
मुझको मिटा न डाले कहीं ये दोस्ती का शौक..."
‎"दुनिया चाहे कुछ भी सोचे, मैं तो बस जानू इतना,
तुम मिल जाओ तो है जीवन, तुम बिन मैं हूँ तनहा !"
‎"खुशमिजाजी को देख मेरे, यारों न दो मशहूर होने की दुआ,
कि आज के दौर में मशहूर लोग, तन्हाईयों में मरते हैं..."

शनिवार, 23 जुलाई 2011

मानसिक गुलामी और संकीर्णता के दायरे में सजी आजादी

आजादी, जिसके लिए हमारे पूर्वजों ने लम्बे समय तक राष्ट्रविरोधी शक्तियों से संघर्ष किया और अपने प्राणों की आहुति देकर कर हमें स्वतंत्र वातावरण में सांस लेने का हक दिलाया। आज इस आजादी को हमने अपने निजी स्वार्थ और एकमेव लाभ की मनोदशा के आधार पर फिर से गिरवी रख दिया है। कल तक जिस आजादी के सुनहरे स्वप्न को अपनी पलकों में सजोकर हमारे देश के स्वातंत्र वीरों ने अपनी भारत माता को विदेशी ताकतों से आजाद कराने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया, आज उसी भारत में सियासत और तुष्टीकरण की ऐसी आंधी बह चली है की आजाद देश की गुलाम जनता सत्तासीन निरीह हुकूमत के खिलाफ जूझने पर मजबूर है।

लूट आज भी बदस्तूर जारी है, फर्क सिर्फ इतना है कि उस समय गोरे अंग्रेजों ने देश को दीमक की तरह खोखला किया और आज काले अंग्रेज़ इस काम को कर रहे हैं। खेल वही है बदले हैं तो सिर्फ इसके किरदार। उस दौर में सत्ता और धन पर नियंत्रण अंगरेज़ हुक्मरान और देसी रजवाडों-नवाबों तक सीमित था, आज सफ़ेद पोश नेताओं, अफसरों और सत्ता के दलालों के हाथ में है। आजादी के बाद बने पहले प्रधान मंत्री द्वारा सन् १९४८ में पंचवर्षीय योजनाओं का शुभारंभ किया गया था, जिसके अंतर्गत देश का विकास किया जाना था लेकिन आज कितने लोग हैं जो जानना चाहते है कि पंचवर्षीय योजना के तहत क्या कार्य किये गये हैं? प्रत्येक वर्ष कितना पैसा पंचवर्षीय योजनाओं के नाम पर खर्चा जाता है यह जानने वाला कोई नहीं?

स्वतंत्रता पूर्व जिस अवस्था में भारत और भारतवासी थे, उसमें देशवासियों पर केवल सरकार के खिलाफ कार्य न करने देने की पाबंदी थी लेकिन आज स्थिति उससे भी अधिक भयावह हो गयी है। एक तरफ महात्मा गाँधी के रामराज्य की परिकल्पना को साकार करने का स्वप्न दिखाकर देश के हुक्मरान देशवासियों के खून-पसीने की कमाई को विदेशी बैंको में ज़मा कर रहें है तो दूसरी तरफ महगाई की चाबुक निरीह जनता की कमर तोड रही है। बाकि बची कसर सरकार का कर तमाचाङ्क आये दिन हमारे शक्ल की मालिश कर पूरा कर रहा है। क्या इसी आज़ादी की संकल्पना हमारे देश के अमर शहीदों और महापुरुषों ने की थी...? वास्तव में हमें आजादी नहीं मिली है, बल्कि देश की सत्ता को विदेशी गोरों से स्थानांतरित कर उन्हीं की नुमाइंदगी करने वाले देशी काले लोगों की हाथों में सौंप दी गयी है। वास्तविकता यह है कि आज भी हम मानसिक रूप से गुलाम हैं।

सांस्कृतिक दृष्टि से भारत एक पुरातन देश है, किन्तु राजनीतिक दृष्टि से एक आधुनिक राष्ट्र के रूप में भारत का विकास होना चाहिए था जिसमे स्वतंत्रता-संग्राम के साहचर्य और राष्ट्रीय स्वाभिमान के नवोन्मेष के सोपान का दर्शन हो। लेकिन अब समय की आवश्यकता है कि सभी राजनीतिक पार्टियां और नीति निर्देशक तत्व देश की जनता के सामने यह स्पष्ट करें कि वे देश को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं। स्पष्ट करें अपनी अपनी रणनीति कि देश से गरीबी हटाने, भ्रष्टाचार को मिटाने, आतंकवाद को जड से उखाडने, नक्सलवाद के सफाए, समस्त भारतीयों को निर्भय एवं सुखी, संपन्न और विश्व में भारत को एक भरोसेलायक आर्थिक महाशक्ति बनाने के लिए क्या पुष्ट योजनाएं और किसके पास हैं। देश को विकास पथ पर ले जाने की बात करने वाले हमारे राजनेता धनलोलुप्सा को जागृत किये हुए हैं और जनता को विश्वास का घोल पिलाये जा रहे है कि सरकार उन्हीं के लिए तो प्रतिबद्ध है।

देश की जनता और आजादी के परवानों ने अनगिनत कुर्बानियां दे कर देश को अंग्रेजों से आज़ाद करवाया ताकि इस देश की धन संपदा इस देश की गरीब जनता को नसीब हो और वे अपना भविष्य संवार सकें। लेकिन आज देश में भ्रष्टाचार चरम पर है। घोटाले पर घोटाले हो रहे हैं। नेता भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हैं। ऐसे में यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि विदेशी गोरे लोगों के पिटठू, जो सरकार बन हमारे देश की दिशा और दशा तय कर रहे हैं, इन्हें देश और देश के विकास में कोई रूचि नहीं है। तो क्या यह सवाल नहीं उठता कि अगर गोरे लोगों की नीतियों को ही देशी लोग अनुपालन में लाया जा रहा है वो भी और घृणित रूप मे तो इससे बेहतर तो अंग्रेजों का ही शासन था, जहां कम से कम इतनी खामियां तो नहीं थी। आजाद भारत की व्यवस्था और सामाजिक स्थिति पर कई सवाल खडे़ होते हैं जिनमें मुख्य यह है कि ऐसी आज़ादी किस काम की जो हमें मानसिक गुलामी और संकीर्णता के दायरे से मुक्त ना कर सके?ङ्क

आजादी शब्द जिसका मतलब ही है कि इंसान को अपने मन के मुताबिक कार्य करने की स्वतंत्रता हो। पर वास्तविकता यह है कि हमारी आजादी अन्य लोगों की सोच पर निर्भर करती है कि वह इसके बारे में क्या सोचते हैं। ऐसे में स्पष्ट है कि आज आजादी की आबो-हवा में सांस लेने वाले लोग अपनी मौलिक सोच को अब भी सामने वाले की बातों का गुलाम बना कर रखे हुए हैं। शाब्दिक अर्थो के तौर पर लोग आजादी को केवल अपने लाभ और स्वार्थसिद्धी का माध्यम मामने का चलन चल पडा है, किसी को इस बात से कोई फर्क नहीं पडता कि आजादी का मूलभाव क्या है और किस लिए लाखों देशवासियों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर किया। सरकारी अधिकारी अपने नौ से पांच के कार्य अवधि पर चाय और पान के साथ बातों के हवाई किले बनाते हुए समय को बिताते हैं और वेतन का भोग लगाते हैं। ऐसे में कैसे कहा जाये की इसी आजादी के लिए कभी देश में संग्राम हुआ था।

भारत ऐसा देश है जिसके पास दुनिया का सबसे बडा लिखित संविधान है। परन्तु अब भारत, जिसने हर संकट की घडी में बिना धैर्य खोये हर मुसीबत का सामना किया, अनेकों बुराइयों से जकडा हुआ है। मसलन आतंकवाद, भ्रष्टाचार, आर्थिक विषमता, जातिवाद, सत्ता लोलुपता के लिए सस्ती राजनीति करना जो कि कभी-कभी सामाजिक वैमनष्य के साथ-साथ देश की एकता को ही संकट में डाल देता है। इसके अलावा राजनीति में वंशवाद व भाई-भतीजावाद, न्यायिक प्रक्रिया में विलम्ब इन सारी नकारात्मक खूबियों से लबरेज कुशासन और कुव्यवस्था, जिसमें नौकरशाही के भ्रष्टाचार और चालबाजियों ने लोगों के दैनिक जीवन में निराशा घोल दी हो। जहाँ कुशासन ने न्याय-तंत्र की निष्पक्षता में लोगों की आस्था हिला दी हो, ऐसी आजादी किस काम की।

आज की इस आजाद भारत में रहने वालों की बात की जाये तो उनकी अपनी मानसिकता में आजादी का अलग ही मायने है। जेपी आंदोलन के प्रमुख नायकों में एक वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय का कहना है कि हमारी वर्तमान व्यवस्था अर्थात संविधान के अनुसार अंतिम सत्ता साधारण नागरिक में है लेकिन उस पर उसका कोई नियंत्रण नहीं है। जरूरत है एक ऐसी व्यवस्था की जो सत्ता पर आम आदमी का नियंत्रण स्थापित करे। आज जनता के हाथ में जो ताकत है, वह दिखावटी अधिक है। आजादी के बाद बना हमारा संविधान एक ऐसे उल्टे पिरामिड की रचना करता है जिसमें सत्ता नीचे से ऊपर नहीं बल्कि ऊपर से नीचे आती है। दूसरे शब्दों में कहूं तो यह संविधान स्वतंत्रता सेनानियों के सपनों के अनुरूप नहीं है। स्वाधीनता संग्राम का जो लक्ष्य था हम उस लक्ष्य तक नहीं पहुच सके हैं।

रामबहादुर राय के अनुसार वर्तमान में देश में अनुपालित संविधान सिद्धांततः तो लोकतंत्र कायम करता है लेकिन वास्तविक स्थिति में यहां लोकतंत्र नहीं है। यह अंग्रेजों की योजना में बना हुआ संविधान है। सत्ता के लिए अधीर हो चुके कांग्रेसी नेताओं ने अंग्रेजों से समझौता कर एक काम चलाऊ संविधान बना लिया। १९३५ का जो कानून अंग्रेजों ने बनाया था, उसी कानून के अस्सी फीसदी हिस्से को इस संविधान में जगह दे दी गयी है। १९३५ में बने गवर्नमेंट आफ इंडिया एक्ट को नेहरू ने गुलामी का दस्तावेज कहा था। अब बताइए गुलामी के दस्तावेज पर बने इस संविधान को हम क्यों मानें। व्यवस्था परिवर्तन में जुडे लोगों को अब सबसे पहले इस संविधान को ही बदलने की कोशिश करनी होगी। आजादी के सही मायने तभी सामने आयेंगे जब इसके मुताबिक संविधान बनाया जायेगा

स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के अवसर पर स्कूल कालेजों और अन्य सरकार विभागों पर तिरंगे झंडे को फहराने भर से आजादी का औचित्य नहीं सामने आ पाता। जिस उद्देश्य से भारत देश की आजादी के लिए लोगों ने प्रयास किये कि देश में समानता, सम्पन्नता और विकास की छंटा लहराया करेगी, सब ओर खुशहाली होगी और सब एकजुट होकर रहेंगे। यह सारी उद्देश्यपरक वैचारिकता आज के भोग-विसाली समाज में कहीं विलुप्त हो चुकी है। कष्टों से मिली आजादी पर हर भारतीय की अपनी-अपनी अलग राय है। कोई देश में कानून व्यवस्था, राजनीतिज्ञों एवं सरकारी अफसरों की बेईमानी का रोना रोते हैं। तो कुछ लोग अपनी स्वार्थता को ही आजादी का परिचायक बताते हैं। लेकिन इससे अलग एक और भारतीय वर्ग है जो सरकार और सरकारी कार्यगुजारियों की मार झेल रहा है। उनके लिए आजादी के मायने अलग हैं जब आपको इंसाफ़ के लिए लडाई लडनी पडे, मतलब आपको सही मायनों में आज़ादी नहीं मिली है। पैसे वाले आरोपी अपने रसूख़ के बल पर कानूनी प्रक्रिया को खींचते रहते हैं। जब तक देश में भय का माहौल रहेगा, हमारी आज़ादी औचित्यहीन हैं।

मंगलवार, 19 जुलाई 2011

दिल-ए-हालत...

"ये कैसा महोब्बत का सफ़र देख रहा हूँ,
ना है मंजिल ना कोई राहे गुजर देख रहा हूँ !

टूटेगा दिल ये इश्क में हर बार की तरह,
में खुद को आजमा के मगर देख रहा हूँ !

यूँ मरने का मैं इतना शौकीन तो ना था,
मोहब्बत का मगर खुद पे असर देख रहा हूँ !

इस बार भी दुश्मन से खायी हैं गालियाँ,
कुछ ऐसा शराफत का असर देख रहा हूँ !

माना कि वो बेमरव्वत मुझे रखता हैं गैरों में,
मैं उसको अपना कह के मगर देख रहा हूँ !...."

कौन लेगा 'बिग थ्री' की जगह?

द्रविड़ और लक्ष्मण दोनों का ही ये आख़िरी इंग्लैंड दौरा हो सकता है. आज यदि सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्मण अचानक से अवकाश ले लें तो ज़रा सोचिए भारतीय बल्लेबाज़ी क्रम कैसी नज़र आएगी. और ये बिल्कुल ही काल्पनिक स्थिति हो ऐसा भी नहीं है, ये शायद जल्द ही हक़ीकत बन जाए. कितनी तैयार है भारतीय टीम इन रिक्त स्थानों को भरने के लिए यह भी सामने आ जायेगा ?

इन तीनों बल्लेबाज़ों के क्रिकेट अनुभव को जोड़ें तो उन्होंने ४५३ टेस्ट खेले हैं, ३५,१५२ रन बनाए हैं और ९९ शतक लगाए हैं. ऐसे दिग्गजों की जगह कैसे भरी जा सकती है? लक्ष्मण इस नवंबर में ३७ साल के हो जाएंगे जबकि सचिन और द्रविड़ अपने अगले जन्मदिन पर ३९ मोमबत्तियां फूंकेगे. भारत की कोशिश यह सुनिश्चित करने की होगी कि तीनों एक साथ ही रिटायर न हो जाएं. ये देखना होगा कि ये बारी-बारी से रिटायर हों और नए खिलाडियों को दुनिया के आजतक के सबसे बेहतर मध्यक्रम बल्लेबाजों में गिने जानेवाले खिलाडियों से दिशानिर्देश मिल सके. इन बल्लेबाज़ों में से अब शायद ही कोई दोबारा इंग्लैंड के दौरे पर आए वैसे ये निश्चित तौर से कभी नहीं कहा जा सकता.

मिसाल के तौर पर पिछली बार जब भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर गई तो सचिन तेंदुलकर जहां भी गए उन्हें हर जगह प्यार भरी विदाई दी गई लेकिन अब ये लगभग तय है कि वो इस साल के अंत में होनेवाले ऑस्ट्रेलियाई दौरे में फिर शामिल होंगे. इन तीनों खिलाडियों की महानता इस बात में झलकती है कि क्रिकेट जगत से उनकी विदाई की इबारत कई बार लिखी जा चुकी है लेकिन वो हर बार गेंदबाज़ों के लिए एक बुरे सपने की तरह उभरकर आए हैं. तीनों ही बल्लेबाज़ों के पास इंग्लैंड में अपने रिकॉर्ड की कुछ कमियों को डूर करने का भी मौका हैं.

भारत में लोग यह मान चुके हैं सचिन जैसा दूसरा कोई पैदा नहीं होगा! जैसे सचिन और द्रविड़ दोनों ने मिलकर कुल ८३ टेस्ट शतक लगाए हैं लेकिन क्रिकेट का मक्का कहे जानेवाले लॉर्ड्स के मैदान पर एक भी शतक नहीं है. यदि इसमें सुनील गावस्कर के ३४ शतकों को भी जोड़ दिया जाए तो ये अपने आप में चौंकाने वाली बात है कि भारत के तीन सबसे ज्यादा शतक लगानेवालों में से किसी ने लॉर्ड्स पर शतक नहीं लगाया है. इंग्लैंड में लक्ष्मण का सर्वाधिक स्कोर ७४ रनों का है और शायद वो उसे सुधारने की कोशिश करें.

युवा खिलाडी

जिन युवा खिलाडियों ने पिछले दिनों में उम्मीद जगाई है उनमें से चेतेश्वर पुजारा चोटिल हैं, विराट कोहली का फ़ॉर्म ख़राब चल रहा है, मुरली विजय वेस्टइंडीज़ में संघर्ष करते नज़र आए और सिर्फ़ सुरेश रैना जिन्होंने श्रीलंका में अपने करियर के पहले टेस्ट में शतक जमाया वेस्ट इंडीज़ में सफल होते दिखे. इंग्लैंड में सोमरसेट के ख़िलाफ़ अभ्यास मैच में भी उन्होंने शतक जमाया.

मध्यक्रम में जिन बल्लेबाज़ों की गाडी छूट गई है, भले ही थोड़े समय के लिए, वो हैं तमिलनाडु के सुब्रमण्यम बद्रीनाथ और मुंबई के रोहित शर्मा. इस सूची में काफ़ी दम है और थोड़ी अनुभव भी. बल्कि कोहली तो शायद भविष्य में टीम इंडियन के कप्तान भी बन जाए.

टेस्ट जीवन

सचिन तेंदुलकर :- टेस्ट जीवन की शुरूआत १९८९ में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कराची में
राहुल द्रवि‹ड :- टेस्ट की शुरूआत जून १९९६, इंग्लैंड के ख़िलाफ़ लॉर्ड्स में
वीवीएस लक्ष्मण :- टेस्ट जीवन की शुरूआत नवंबर १९९६, दक्षिण अफ्रीका के ख़िलाफ़ अहमदाबाद में

भारतीय सेलेक्टरों ने शायद रक्षात्मक नीति अपनाई जब उन्होंने कोहली को इंग्लैंड के दौरे पर मौका नहीं दिया. लेकिन वो अभी २२ साल के ही हैं और बिग थ्री के रिक्त किए स्थान को भर सकते हैं. कोहली एक अंदर एक बुलडाग (गंभीर बल्लेबाजी के हुनरमंद) का चरित्र है. एक बार यदि उन्हें अपनी जगह मिल गई तो वो उसे छोड़ेंगे नहीं.

रैना से उम्मीद

तेज़ शॉर्ट पिच गेंदों के ख़िलाफ़ रैना की कमज़ोरी जगजाहिर है लेकिन उनके अंदर का जुझारूपन इस कमज़ोरी के बावजूद उन्हें जीत दिलाता रहता है. ठोस तकनीक सचिन और द्रविड़ जैसे खिलाडियों की पहचान है लेकिन लक्ष्मण ने दिखाया है कि कलेजा बड़ा हो तो ऑफ़ स्टंप के बाहर की कमज़ोरी से निबटा जा सकता है. रैना में भी भविष्य के कप्तान की संभावना है.. ज़िम्बाब्वे के दौरे पर वो भारतीय टीम का नेतृत्व भी कर चुके हैं!

अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में तेईस साल के पुजारा की ज्यादा परीक्षा नहीं हुई है, लेकिन जिस तरह से उन्होंने बैंग्लोर टेस्ट में ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ पारी खेली वो सराहनीय थी. भारत वो टेस्ट मैच जीता था. तीसरे नंबर पर खेलते हुए उन्होंने शानदार ७२ रन बनाए और उनसे कई बड़ी पारियों की उम्मीद जगी लेकिन आईपीएल में लगी चोट ने उन्हें वेस्ट इंडीज़ और इंग्लैंड के दौरे से बाहर रखा है. जब उन्होंने अपने करियर की शुरूआत की तो उन्हें अपनी ठोस तकनीक और लंबी पारी की भूख की वजह से द्रविड़ के स्वाभाविक उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जा रहा था. मुरली विजय को एक और उभरते द्रविड़ की तरह देखा जा रहा है. वैसे भी भारत में ये लगभग मान ही लिया गया है कि अब दूसरा तेंदुलकर नहीं पैदा हो सकता!

एक ओर जहाँ विराट कोहली के अंदर आसानी से अपनी जगह नहीं छोड़ने का जज्बा है, वहीँ मुरली विजय के तेवर भी बड़े मैचों वाले हैं और उनमें भी पिच पर चिपकने वाले वो गुण हैं जिनसे बड़े स्कोर बनते हैं. आईपीएल ने उनकी तकनीक को ज़रूर नुकसान पहुंचाया है क्योंकि उन्हें कई बार पहले से फ्रंट फुट पर खेलने का मन बनाते देखा गया है और टी-२० मैचों में फ्रंट फ़ुट को गेंद की लाईन से हटाते देखा गया है. सत्ताईस साल के विजय कोई नए नवेले नहीं हैं और इसलिए उन्हें वापस ड्रॉइंग बोर्ड पर जाने की ज़रूरत है.

युवराज का अनुभव

युवराज सिंह इतने समय से खेल रहे हैं कि कई बार आश्चर्य होता है जब पता चलता है कि उनकी उम्र ३० से नीचे है. एक दिवसीय मैचों में उनकी जगह को कोई चुनौती नहीं दे सकता, उन्होंने २७४ एक दिवसीय मैच खेले हैं. लेकिन सिर्फ़ ३४ टेस्ट मैच में उन्हें जगह मिली है और वहां वो अपने को स्थापित नहीं कर पाए हैं. उनके बारे में यही कहा जा सकता है कि जब वो चल जाते हैं तो अद्भुत नज़र आते हैं लेकिन जब नहीं चल पाते तो स्विंग और स्पिन दोनों ही के ख़िलाफ़ संघर्ष कर रहे होते हैं. बदलाव के दौर में शायद उनका अनुभव काम आए लेकिन उन्हें अब भी ये साबित करना है कि वो लंबी रेस के घोड़े हैं.

जब फ़ैबुलस फ़ोर के नाम से मशहूर बेदी, प्रसन्ना, चंद्रशेखर और वेंकटराघवन का स्पिन दौर खत्म हुआ तो कई लोगों को उम्मीद थी कि उनके उत्तराधिकारी भी बिल्कुल उन्हीं के जैसे होंगे. और इसलिए उनकी जगह आए गेंदबाज़ों की काफ़ी आलोचना हुई कि वो फ़ैब फ़ोर जैसे नहीं है. अब प्रशंसक वो ग़लती नहीं दोहराएं तो बेहतर है क्योंकि इससे उन नए खिलाडियों पर दबाव और ज्यादा बढेगा जो अपने समय के महानतम बल्लेबाज़ों के पदचिन्हों पर चलने की कोशिश कर रहे होंगे!.....

शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

एक सच जीवन का ....

"कहीं सलाखें लोहे की, कहीं सलाखें तृष्णा की,
कहीं सांस का आना जाना तक पीड़ा का बंधन है/
हम सब सिलबट्टे पर रखकर खुद अपने को पीस रहे हैं,
और जमाने की नजर में- मिला मुफ्त का चन्दन है//

संबंधों के कोलाहल में सिर्फ स्वार्थ की अनुगूँज हैं,
...वरना मन की देहरी पर तो सन्नाटें ही बिखरे हैं/
रहा सवाल उड़ने का हवा में तो सुनो सलोने पंछी,
पंख तुम्हारे भी कतरे हैं, पंख हमारे भी कतरे हैं...//"

Pages