हम अक्सर कुछ ऐसी बाते कहते और सुनते हैं जो हमे तो अच्छी लगती हैं पर सामने वाला इसे पसंद नहीं करता । ये तो पता था की किसी एक बात से सबको खुश नहीं रखा जा सकता , पर ये नहीं जानता था की आपकी कही एक बात किसी को दुःख भी पंहुचा सकती है । आज मैंने इस बात को भी समझ लिया की आप कुछ कहने से पहले सौ बार सोचिये की कहीं इससे कोई दुखी तो नहीं होगा । यहाँ बात कहने से तात्पर्य ये नहीं की आप किसी की बुराई या खामिया छाट रहे हैं बल्कि किससे ये बात करे इसका भी ध्यान देना जरुरी होता है ।
आज मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ , एक महोदय से अपने कॉमन फ्रेंड के बारे में बात की जो किसी प्रकार से उसे पता चली … खैर इसमें कोई गलत बात नहीं थी क्योंकि मै खुद उससे इस बारे में बात करने को था । मै उसे बताना चाहता था की अमुक व्यक्ति से मेरी बात हुई , पर अमुक व्यक्ति मुझसे तेज़ निकला और एक प्रकार से मेरी कही हर अच्छी-बुरी बात को उसके सामने ऐसे रखा की मै ही दोषी हो गया । अब उस मित्र को ऐसा लगता है की मैंने उसकी बुराई उसके पीठ पीछे किसी और से की है । पर ये तो मै ही जनता हूँ मैंने क्या और क्यों कहा । इन बातो के पीछे मेरी क्या मनसा थी । पर मै गलत साबित हुआ और अब मै खुद अपनी नजरो में दोषी लग रहा हूँ की चाहे जो हुआ पर मुझे किसी की बात उसकी अनुपस्थिति में किसी अन्य के सामने नहीं करनी चाहिए थी ।
अपनी गलती की माफ़ी तो मैंने आज उस दोस्त से मांग ली , साथ ही एक वायदा भी कर आया की अब उससे जुडी किसी बात को उसे छोड़ किसी से नहीं करूँगा । पर दिल को जाने क्यों ऐसा लग रहा है की अब किसी से बात नहीं करनी चाहिए, कम से कम अगले कुछ दिनों तक तो नहीं ही। शायद पहली बार इस तरह से अपना ही मजाक उड़ते मैंने पाया है कि अब हर किसी से रूठ जाने को दिल करता है । बस मै और मेरी तन्हाई ना कोई बात ना किसी की रुसवाई ….....॥